आघुनिक बिहार के निर्माता डा. श्री कृष्ण सिंह स्वतंत्रता-संग्राम के अग्रगण्य सेनानियों में से रहे है । इनका का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र एवं जन-सेवा के लिये समर्पित था । स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद बिहार के नवनिर्माण के लिए उन्होंने जो कुछ किया उसके लिए बिहारवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे । राजनीतिक जीवन के दुर्धर्ष संघर्ष में निरन्तर संलग्न रहने पर भी जिस स्वाभाविकता और गम्भीरता के साथ वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते थे वह आज के युग मे अत्यन्त दुर्लभ है । सत्य और अहिंसा के सिद्धांत में उनकी आस्था अटल थी ।
बिहार केसरी डा. श्री कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 ई. (तद्नुसार कार्तिक शुक्ल पंचमी संवत् 1941 वि.) को उनके ननिहाल वर्तमान नवादा जिला के नरहट थाना अन्तर्गत खनवाँ ग्राम के एक संभ्रांत एवं धर्मपरायण भूमिहार ब्राहाण परिवार में हुआ था । उनके पूज्य पिता का नाम श्री हरिहर सिंह था ।
बचपन से ही श्रीबाबू में संकल्प-दृढ़ता स्वाभिमान एवं ज्ञानार्जण के प्रति अभिरूचि आदि गुणों का आभास होने लगा था । जिसका सम्यक विकास आगे चल कर हुआ । डा. श्रीकृष्ण सिंह के प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव कि प्राइमरी पाठशाला में हुई और छात्रवृति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए वे जिला स्कूल, मुगेंर, में भर्त्ती हुए । सन् 19.6 ई. में इण्ट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर वे पटना कालेज के छात्र बने । कालक्रम से आपने 1913 में एम.ए. की डिग्री तथा 1914 ई. में बी. एल. की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की ।</p>
अपने युग के अन्य मेधावी छात्रों से सर्वथा भिन्न श्रीबाबू की मनोवृति प्रारम्भ से ही सरकारी नौकरी के प्रतिकूल थी । अतः शिक्षा समाप्ति के बाद अपने मुगेंर मे वकालत शुरू की । कुछ ही दिनों में आपकी वकालत चमक उठी । विद्यार्थी जीवन से ही डा. श्रीकृष्ण सिंह राष्ट्र एवं समाज सेवा की ओर प्रवृत हुए उन बंगभंग एव स्वदेशी आंदोलन आदि तत्कालीन राजनीतिक आंदोलनों का कापफी प्रभाव पड़ा । वे प्रारम्भ से ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक तथा श्री अरविन्द के विचारों से प्रभावित थे । अतः अपने छात्र जीवन से ही वे एक जननेता के रूप में बिहार के राजनीतिक क्षितिज पर प्रकट हो चुके थे ।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से डा. श्रीकृष्ण सिंह की पहली व्यक्तिगत भेंट सन् 1911 ई. में हुई और उसके बाद ही उनकी जीवन-यात्रा में एक नया मोड़ आया और वे महात्मा गाँधी के कट्टर अनुयायी बन गये । उत्कृष्ट वाग्मिता का वरदान डा. श्रीकृष्ण सिंह को प्रारम्भ से ही प्राप्त था और अपने इसी सिंह गर्जन के लिए बिहार केसरी की सम्मानपूर्ण संज्ञा से विभूषित हुए । डा. श्रीकृष्ण सिंह ने पहली जेल यात्रा सन् 1911 ई. में ब्रिटेन के युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स की भारत-यात्रा के बहिष्कार-आंदोलन के क्रम में की थी । मार्च, 1911 ई. में विजयवाड़ा कांग्रेस के निर्णयानुसार तिलक स्वराज्य फंड के लिए एक करोड़ रूपया एकत्र करने का जब निश्चय किया गया तो बिहार प्रान्तीय कांग्रेस समिति द्वारा निर्मित तिलक स्वराज्य फंड के डा. श्रीकृष्ण सिंह संयोजक बनाये गये ।
अपनी अद्भुत कर्मठता, उदारता एवं प्रखर राजनीतिक सूझ-बूझ के धनी डा. श्रीकृष्ण सिंह सन् 1917 ई. में लेजिस्लेटिव कौंसिल और सन् 1934 ई. में केन्द्रीय एसेम्बली के सदस्य चुने गये । सन् 1931 ई. का भारतीय संविधान जब 1 अप्रैल 1937 से लागू हुआ तो डा. श्रीकृष्ण सिंह के प्रधान मंत्रित्व से ही बिहार में स्वायत्त शासन का श्रीगणेश हुआ । वे ही बिहार के एक ऐसे वरेण्य कालपुरूष थे जो जीवन के अंतिम घड़ी (31 जनवरी 1961) तक बिहार के मुख्य मंत्री के सम्मानित पद पर बने रहे । बीच में 1938 में अंडमान निकोबार में राजनीतिक कैदियों को छोडे़ जाने के प्रश्न पर ब्रिटिश सरकार से मतभेद के कारण पद-त्याग किया था । पुनः एक बार 1939 मे कांग्रेस के निदेशानुसार ब्रिटेन की नीति के विरोध में त्याग-पत्र दिया था । </p>
श्रीकृष्ण बाबू स्निग्धा और उदार भावनाओं के मूर्तिमान प्रतीक थे । दूसरों के कष्ट को देखकर द्रवित होना और मार्मिक दृश्यों के आघात से फूट पड़ना उनका सहज स्वभाव था । उनका हृदय निश्च्छल प्रेम और दया से परिपूर्ण था । उनका पुस्तक-प्र्रेम अलौकिक था और उनकी वाग्मिता सुविख्यात थी । उनकी प्रगाढ़ विद्वता से ही अनुप्रमाणित होकर पटना विश्वविद्यालय ने डॉक्टर ऑफ लॉ की उपाधिा से अलंकृत किया था । </p>
नव बिहार के निर्माता के रूप में बिहार केसरी डा. श्रीकृष्ण सिंह का उदात्त व्यक्तिगत, उनकी अप्रतिम कर्मठता एवं उनका अनुकरणीय त्याग़ बलिदान हमारे लिए एक अमूल्य धारोहर के समान है जो हमे सदा-सर्वदा राष्ट्रप्रेम एवं जन-सेवा के लिए अनुप्रेरित करता रहेगा । आज का विकासोन्मुख बिहार डा. श्रीकृष्ण सिंह जैसे महान शिल्पी की ही देन है जिन्होंने अपने कर्मठ एवं कुशल करो द्वारा राज्य की बहुमुखी विकास योजनाओं की आधारशिला रखी थी । बिहार हमेशा उनका ऋणी रहेगा। उन्होंने इस राज्य का लगभग 24 वर्षं तक (1 अप्रैल 1937 से 2..4.1946 तक प्रधान मंत्री एवं 2..4.1946 से 31.1.1961 तक मुख्य मंत्री ) प्रधानमंत्री एवं मुख्य मंत्री के रूप में सफलतापूर्वक दिशा-निर्देश किया था एवं इस राज्य के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी ।
डा. श्रीकृष्ण सिंह ने अपनी बहुआयामी प्रतिभा, विराट व्यक्तित्व सेवा और साधानामय जीवन के कारण जो विराट यश और गौरव अर्जित किया था । वह उनके विशाल और विलक्षण व्यक्तित्व के सर्वथा अनुरूप था । श्रीबाबू अब हमारे बीच नही हैं किन्तु उनका संदेश उनकी विचारधाराएं] उनके उच्च आर्दश सदैव हमारा मार्ग दर्शन करते रहेंगे । उनका कहना था - आजाद होने के बाद हमें जो काम करना है वह निर्माणात्मक है । पहले हमें सिपर्फ जोश पैदा करना था और वह काम कुछ आसान था । आज हमें अपने देश के करोड़ों लोगों के नजदीक पहुँच कर उनके हृदय तथा मस्तिष्क को छूना है ताकि आज उनके भीतर देश के निर्माण में योग देनेवाली जो शक्ति कुंठित होकर बैठी है । वह जीवन को सुन्दर बनाने के लिए काम करने की उत्कट इच्छा के रूप में प्रवाहित हो सके ।
श्रीबाबू के विषय में भारत के महान विभूतियों के विचार
श्री बाबू एक महान वक्ता थे जहाँ भी वे भाषन करने को खड़े होते थे जनता प्रभावित हो उठती थी । देश के लिए बलिदान-भावना उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी । - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
श्री बाबू का ज्ञान बड़े-से-बड़े पुस्तकालय की पुस्तकों में समाहित ज्ञान के समान था ।- जवाहर लाल नेहरू
वे अपने दिल की बातों को छिपाना तो जानते ही नही थे । तालाब के स्वच्छ पानी की तरह उनके हृदय में क्या भरा है साफ-साफ दिखाई पड़ता था । - संत विनोबा भावे
डा. श्रीकृष्ण सिंह देश की स्वतंत्रता के लिए संग्राम करने वाले वीर योद्धा आघुनिक बिहार के निर्माता तथा देश के एक प्रमुख नेता थे- डॉ. जाकिर हुसैन
श्री बाबू ने उस राज्य के लिए अपने को समर्पित कर दिया था] जिसके शासक थे । उनके तौर-तरीके उनकी बुद्धिमत्ता अपने राज्य के प्रति उनका स्नेह भाव किसी भी प्रशासन के लिये बहुमूल्य सिद्ध हो सकते थे । - डा. विधानचन्द्र राय